
रायगढ़:- उन सभी विभूतियों को नमन जिन्होंने भारतीय लोकतान्त्रिक मूल्यों और सिद्धांतों को गढ़ने में, उनके संरक्षण और संवर्द्धन में और उसकी गरिमा बढ़ाने में योगदान किया है। साथियों बाबा साहेब डा. भीम राव अम्बेडकर द्वारा लिखित हमारा भारत का संविधान छब्बीस जनवरी 1950 को लागू हुआ ,इसी उपलक्ष्य में छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में पूरे देश भर में मनाया जाता है। जगह जगह तिरंगा झंडा फहराया जाता है , राष्ट्र गान गाया जाता है देशभक्ति पूर्ण भाषण दिये जाते हैं किंतु जिस संविधान के लागू होने के उपलक्ष्य में यह उत्सव मनाया जाता है न उसकी चर्चा होती है न उसके निर्माता की जिन्होंने संविधान में ही उद्देश्यिका लिखकर स्पष्ट कर दिया था कि हमको कैसा देश कैसा समाज बनाना है।
संविधान की प्रस्तावना उद्देश्यिका
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न , समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य, बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को,सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई.( मिती मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा अंगीकृत,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।
जय संविधान,जय लोकतंत्र,जय भारत
अब प्रश्न उठता है कि संविधान लागू होने के 68 साल बाद भी उसमें निर्देशित व अपेक्षित समता स्वतंत्रता बंधुत्व और न्याय जैसे महान मानवीय मूल्यों की समाज व देश में स्थापना हो पायी। उत्तर नकारात्मक ही है जिसकी आशंका बाबा साहेब ने उसी समय जता दी थी कि जिनके हाथों में मैं संविधान सौंप रहा हूं जिनके ऊपर इसे लागू करने की जिम्मेदारी है वे विषमता वादी हैं इस लिए वे इसे लागू करेंगे इसका मुझे विश्वास नहीं है। साथियों मनुवादी सरकारों ने अपना विषमता वादी एजेंडा चलाया वह उनका स्वभाव है किन्तु हम बहुजनों ने क्या किया। क्या बाबा साहेब के विचारों को बहुजनों तक पहुंचाया।क्या संविधान में निहित उद्देश्य को जन-जन तक पहुंचाया। शायद नहीं,इसलिए इस छब्बीस जनवरी को देश के हर समारोह में संविधान की उद्देशिका भी आवश्यक रूप से पढ़ाये जाने की जरूरत है और मानवता वादी महापुरुषों बुद्ध कबीर गुरु घासीदास फुले साहू अम्बेडकर पेरियार आदि के विचारों पर विस्तृत चर्चा करने की जरूरत है क्योंकि उनके समतावादी विचार ही हमारे संविधान का आधार हैं और विचारों के प्रचार-प्रसार का काम निरंतर जारी रखने की जरूरत है। विषमता वादियों के हाथ में संविधान सुरक्षित नहीं है यह साबित हो चुका है इसलिए सत्ता की बागडोर बहुजनों के हाथ में कैसे आए उसके लिए युद्ध स्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। समता वादी बहुजनों के सत्ताधारी बनने पर ही समता वादी संविधान सही मायने में लागू हो सकेगा। तभी भारत प्रबुद्ध व समृद्ध भारत बन सकेगा।
आप सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।